आशा जीवन जीने की शक्ति प्रदान करती है। मनुष्य का जीवन अनंत आशाओं से भरा होता है। सच तो यही है कि यह हमारे जीवन के लक्ष्यों का निर्धारण भी करती है। लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि आशा और कामना की एकाध कड़ी पार करते ही मनुष्य अनंत आशाओं के 'चक्रव्यूह' में फंसता चला जाता है। जीवन में अगर सकारात्मक आशा की जाए, तो सफलता मिलनी निश्चित है। लेकिन जब समुद्र की लहरों की तरह मन में आशा की अनंत लहरे उठने लगती हैं, तो उसे पूरा करना संभव नहीं हो पाता। यह भी सच है कि जब मनुष्य की आशा एक-दो बार पूरी हो जाती है, तो वह स्वभावत: अहंकारी हो जाता है। वह सब कुछ पा लेना चाहता है, जिसकी वह कल्पना करता है। दरअसल, एक आशा पूरी होती है, तो दूसरी सिर उठाकर सामने खड़ी हो जाती है। प्रत्येक मनुष्य धन कमाना चाहता है। इसके लिए वह अनेक उल्टा-पुल्टा प्रयत्न करता रहता है। जब एक बार धन की प्राप्ति हो जाती है, तो वह और धन प्राप्त करना चाहता है। मनुष्य की चाह का कोई अंत नहीं है। वास्तव में, कामना और वासना दो ऐसे मनोवेग है, जो कभी पूरी नहीं होती है। आज तक धन की कामना और वासना की पूर्ति से कभी कोई संतुष्ट नहीं हुआ है। कामना और वासना की पूर्ति में मनुष्य अपना सारा जीवन नष्ट कर देता है, फिर भी उसे परम सुख की कभी प्राप्ति नहीं होती है। सुख की खोज में भटकते-भटकते मनुष्य अंत में दुख ही प्राप्त करके घर लौटता है। अक्सर पहली सफलता मिलते ही मनुष्य अहंकारी बन जाता है और वह चाहता है कि उसे वह सब कुछ प्राप्त हो जाए, जो वह चाहता है। वह अपने अहंकार के पैरों तले सबको रौंद देना चाहता है और जब कभी उसे कोई सफलता नहीं मिलती है या उसकी कामना की पूर्ति नहीं होती है, तो वह आक्रामक या आहत हो जाता है और हीन भावना से ग्रसित हो जाता है। दरअसल, हीन भावना से ग्रसित लोग ही विध्वंसक हो जाते हैं। पशुओं में भी यह प्रवृत्तिदेखी गई है कि जब कभी उन्हे इच्छित वस्तु प्राप्त नहीं होती है, तो वे आक्रामक हो जाते हैं। आशावादी होना जीवन के लिए उपयोगी है। लेकिन नकारात्मक आशा हमारे जीवन के लिए खतरनाक बन जाती है। आज प्रत्येक परिवार में कलह दिखाई पड़ता है, क्योंकि परिवार के प्रत्येक सदस्य अपने-अपने अहंकार की पूर्ति की आशा में बैठे रहते है। यहां तक कि भयंकर गृहयुद्ध के पीछे हमारी अपूर्ण आशाएं ही वजह बनती है। यदि हम अपने जीवन को परमात्मा का आशीर्वाद मानें, तो अशांति और तनाव कभी भी फल-फुल नहीं सकता है।
हम यह मान लें कि परमात्मा जितना चाहता है, उतना ही हमें देता है। ऐसी सोच ही हमें नकारात्मक आशाओं से मुक्ति दिलाती है। हमारे महान ग्रंथों में भी कहा गया है कि यह संपूर्ण संसार परमात्मा का है। इसके लिए हम प्रतिदिन परमात्मा को धन्यवाद दें कि हे परमात्मा! तुमने मुझे इतना योग्य समझा कि इतना सब कुछ दिया। इसके बाद किसी चीज की आशा करना ही व्यर्थ है।
हम यह मान लें कि परमात्मा जितना चाहता है, उतना ही हमें देता है। ऐसी सोच ही हमें नकारात्मक आशाओं से मुक्ति दिलाती है। हमारे महान ग्रंथों में भी कहा गया है कि यह संपूर्ण संसार परमात्मा का है। इसके लिए हम प्रतिदिन परमात्मा को धन्यवाद दें कि हे परमात्मा! तुमने मुझे इतना योग्य समझा कि इतना सब कुछ दिया। इसके बाद किसी चीज की आशा करना ही व्यर्थ है।