Thursday, July 31, 2008

कल क्यों? आज और अभी


टालमटोल..। इस शब्द से तो हम सभी परिचित होंगे ही। अगर इसने एक बार हमारी जिंदगी में घुसपैठ कर ली, तो समझो तभी से हम वह सब खोने लगेंगे जो अब तक हमने पाया था। इससे फिर हम कहीं भी नहीं पहुंच पाएंगे।
सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? सबसे पहले तो यह समझना महत्वपूर्ण है कि टालमटोल की प्रवृत्ति की जिंदगी में घुसपैठ होने ही नहीं दी जाए। आपने जिम के लिए पैसे तो भर दिए, लेकिन अब आप वहां जा नहीं रहे हैं। जिंदगी में आलसी होने से आसान कोई दूसरा काम नहीं है। आपके किचन का नल टपक रहा है, लेकिन आप उस पर ध्यान देने के बजाय किसी बेवकूफी भरे टीवी सीरियल में व्यस्त होंगे।
आपको जरूरत बाजार जाकर सब्जी खरीदने की है, लेकिन आप है कि डिब्बाबंद भोजन से ही काम चलाए जा रहे हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि आप जो कार्य कर रहे हैं, वह आपको एक जैसा ही लगने लगता है और उसमें बोरियत महसूस होने लगती है। लेकिन सच तो यह है कि जिंदगी में हमेशा ही आपको रस नहीं मिल सकता, कुछ पलों के लिए आपको बोरियत भी झेलनी पड़ती है। ऐसे में खुद को यही कहिए कि यह भी जिंदगी का एक भाग है, अपने लक्ष्यों को पाने के लिए यह भी एक प्रकार का निवेश है। टालमटोल की प्रवृत्ति से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि हर समय खुद को चुनौती देते रहें। इससे आप बोरियत से बचे रहेंगे और आपमें नई ऊर्जा पैदा होगी। यह समझ लें कि कोई भी अपने ‘कम्फर्ट जोन’ में अपना साम्राज्य स्थापित नहीं कर सकता। ऐसा करना हर समय बिल्कुल संभव नहीं है।
जिंदगी का फलसफा है कि जो काम आप आज कर सकते हैं, उसे कल पर नहीं टालें। जब भी आप काम को अगले दिन के लिए टाल देते हैं, वहीं से हमारी जिंदगी में टालमटोल की प्रवृत्ति घर करने लगती है। यह प्रवृत्ति कई बार विफल होने के डर से भी पैदा होती है। हम कोई चीज इसलिए टालते जाते हैं क्योंकि हमें लगता है कि यह काम नहीं कर पाएंगे। यह आपके संदेहों और आत्मविश्वास की कमी से निपटने का एक तरीका मात्र हो सकता है।
अपनी टालमटोल की प्रवृत्ति को मात देने का सबसे अच्छा उपाय है खुद को व्यवस्थित करें। पहले तो यह तय करें कि आप चाहते क्या हैं और फिर उस कार्य को करने की डेडलाइन निर्धारित करें। अपनी प्राथमिकताएं तय करें। अगर आप उन्हें एक कागज पर लिख लेते हैं तो उससे भी शायद आपको मदद मिले। अगर आप कोई काम समय पर करते हैं तो खुद को शाबासी देना भी नहीं भूलें। इससे आपके कार्य में अद्भुत सुधार होगा। आप चाहे तो अपने किसी सहयोगी या अच्छे मित्र को खुद पर निगरानी रखने को भी कह सकते हैं। रोजाना यह सुनिश्चित करें कि आज का कार्य कल के लिए नहीं छूटेगा। विजेता कभी भी आज का कार्य कल पर नहीं छोड़ते। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि आज का कार्य कल पर नहीं छोड़ने वाले ही विजयी होते हैं।

किताब में धड़कते परदे के प्राण

एक व्यक्ति, दशकों तक जिसकी छवि एक खलनायक के रूप में लोगों के जेहन में बसी रही, जिससे मिलने से लोग खौफ खाते थे, पर्दे पर जिसकी विकरालता इतनी जीवंत थी कि लोगों ने उसे ही उसकी वास्तविक छवि मान लिया था, ऐसे अभिनेता प्राण जीवन के बारे में बताती है है बन्नी रूबेन की यह किताब-‘और प्राण’।
पर्दे से परे एक और छवि, जो एक इंसान के मन, जीवन, सपनों, संघर्षो और उम्मीदों का दस्तावेज है। वह व्यक्ति, जो पर्दे पर हमेशा अपराध और षडच्यंत्रों में लिप्त नजर आता था, अपनी असल जिंदगी में कितना सरल, ईमानदार और दयालु व्यक्ति था, जिसे जानने वाला हर व्यक्ति उससे स्नेह किए बगैर नहीं रह सकता था। किताब की भूमिका में अमिताभ बगान लिखते हैं, ‘मुझे लगा कि पर्दे पर खलनायक दिखने वाला व्यक्ति इतना भला और उदार कैसे हो सकता है.. मैंने उनसे सीखा कि अपने पेशे के प्रति पूरी निष्ठा और समर्पण ही एक अभिनेता की विशिष्टता और शक्ति होती है। वे सेट पर पहुंचने में कभी देर नहीं करते।
मिजाज ठीक न हो, तब भी शूटिंग कैंसिल नहीं करते। एक बार वे सेट पर बहुत गुमसुम और खामोश थे। जब घंटों उदासी से नहीं उबरे, तब हमें पता चला कि उनके भाई की मृत्यु हो गई है।’ ऐसी कहानियां तो अब्राहम लिंकन सरीखे लोगों के बारे में सुनने को मिलती हैं कि जीवन का कोई दुख, कोई पीड़ा उन्हें कर्म और कत्र्तव्य के रास्ते से इतर नहीं कर सकती थी। प्राण ने कभी सोचा नहीं था कि एक दिन मुंबई नगरी उनकी कर्म-भूमि होगी।
12 फरवरी, 1920 को पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान इलाके में बसे एक रईस परिवार में प्राण कृष्ण सिकंद का जन्म हुआ। तमाम शहरों में विचरते हुए स्टिल फोटोग्राफर बनने की तमन्ना लाहौर ले आई। नौकरी-पैसा सब दुरुस्त था, लेकिन किस्मत में तो अभिनेता बनना लिखा था।
इस किताब में उन तमाम वर्षो की जद्दोजहद और उतार-चढ़ावों के मार्मिक किस्से हैं। लाहौर की फिल्मी दुनिया, मंटो से पहली मुलाकात, फिल्मों से पिता की नाराजी, शुक्ला से विवाह और बच्चों का जन्म। फिर विभाजन की त्रासदी है, लाहौर से मुंबई का रुख, बेरोजगारी और फाकाकशी के वे दिन, जब लोकल ट्रेन की टिकट के लिए भी गांठ में रुपए नहीं होते थे, जब पांच रु. रोज के मेहनताने पर पहला काम मिला। और फिर सफलता की बढ़ती सीढ़ियां, स्टारडम की चमक और शोहरत की बुलंदियां कि कैसे उन बुलंदियों पर बैठा कोई व्यक्ति उन बुलंदियों को ऐसे निस्पृह भाव से देखता है, मानो ये कल न भी हों तो कोई बात नहीं। पिता की यह सीख ताउम्र प्राण की आत्मा को राह दिखाती रही, ‘सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हुए हमेशा नीचे उतर रहे लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करना, क्योंकि हो सकता है कि भविष्य में तुम्हें भी नीचे की राह देखनी पड़े।’
इस किताब से गुजरना उस पूरे समय से गुजरना भी है। किस्से-कहानियां, प्रसंग और विचार तो नायकों के होते हैं। खलनायक की कैसी कहानी और कैसा विचार। लेकिन यह किताब उसी खलनायक के जीवन को एक विशाल कैनवास पर हमारे सामने प्रस्तुत करती है। और प्राण बड़े पर्दे पर चल रही एक फिल्म की तरह है, जिसका एक-एक फ्रेम कथानक के साथ गुंथा हुआ लगता है। चार दशकों तक सिने प्रेमियों के दिल पर राज करने वाले एक शख्स की लंबी यात्रा का हर मोड़, हर पड़ाव इस किताब में है। किताब पढ़कर महसूस होता है कि इसे तैयार करने में काफी अध्ययन, शोध और परिश्रम किया गया है।
घटनाएं, प्रसंग और उन्हें कहने का अंदाज बांधकर रखता है, लेकिन अनुवाद कहीं-कहीं यांत्रिक और बोझिल हो गए हैं। सिनेमा में जिनकी रुचि है, उनके लिए तो यह किताब है ही, लेकिन सिनेमा से इतर जो जीवन के बारे में, उसके रंगों और उतार-चढ़ावों के बारे में पढ़ना चाहते हैं, उनके लिए भी इस किताब से गुजरना कहीं-न-कहीं एक समृद्ध करने वाला अनुभव ही होगा।

तैयारी ‘जादू’ की!


ासा भी एलियंसऔर दूसरे ग्रहों पर जीवन से जुड़ी संभावनाओं को गंभीरता से ले रहा है। उसके हालिया शोध से लगता है कि एलियंस का अस्तित्व है और आने वाले कुछ वर्षो में इन दूसरे ग्रह के प्राणियों से संपर्क साधा जा सकेगा। साथ ही अन्य ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं के बारे में भी स्थिति काफी कुछ स्पष्ट हो जाएगी। तो तैयार रहें एलिंयस कोहैलोकहने के लिए..
लंबे अरसे से धरतीवासियों के मन में एलियंस यानी दूसरे ग्रह के प्राणियों और यूएफओ यानी अनआइडेंटीफाइड फ्लाइंग ऑब्जेक्ट्स को लेकर कई प्रकार की जिज्ञासाएं रही हैं। साथ ही दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं के बारे में भी तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।
नासा के इस विषय में किए गए कई अनुसंधान आम आदमी की जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए काफी हद तक मददगार भी साबित हुए हैं। हालिया शोध के आधार पर अंतरिक्ष विज्ञानियों को लगता है कि अगले दो दशकों में एलियंस से संपर्क साधने में मानव सफल हो जाएगा।
क्या हैं ये एलियंस वैज्ञनिकों का मत है कि पृथ्वी से दूर दूसरे ग्रहों पर भी जीवन है और वहां भी प्राणियों का निवास है। जिस तरह हम यहां जीवनयापन कर रहे हैं उसी तरह एलियंस भी जीवित हैं। बस फर्क है, तो हमारी और उनकी शारीरिक संरचना, खान-पान, रहन-सहन और यातायात के साधनों और संचार के तरीकों का। वे भी हमारी तरह घूमते-फिरते हैं और अपनी आवक-जावक के लिए यूएफओ या उड़न तश्तरियों का सहारा लेते हैं।
यही नहीं, कई लोगों ने तो इस तरह की उड़न तश्तरियों को आकाश में चमकते प्रकाश पुंज के रूप में देखने का दावा भी समय-समय पर किया है। वैज्ञानिक भी इसकी पुष्टि के प्रमाण जुटाने में लगे हुए हैं। कई तो अपनी खोज के बहुत निकट तक पहुंचने का दावा कर रहे हैं।
जानकारों के मुताबिक द्वितीय विश्वयुद्घ के समय से ही एलियंस और उड़नतश्तरियों से जुड़ी खोज का आगाज हो गया था, जब कुछ लोगों ने इस तरह के यान देखे जाने की बात की। 1947 में एक अमेरिकी निजी विमानचालक ने जब यूएफओ देखने का दावा किया, तो विशेषज्ञों की रुचि इस विषय में और ज्यादा बढ़ गई।
डेरेक की खोजकीथ अर्नाल्ड के अनुसार उन्होंने ऐसे 9 ऑब्जेक्ट्स देखे, जो 1200 मील प्रतिघंटे की रफ्तार से उड़ रहे थे। अमेरिकी विशेषज्ञ डॉ. डेरेक का कहना है कि तकनीकी रूप से गैलेक्सीज में जीवन 10 हजार से भी अधिक आयामों में मौजूद है। पिछले वर्ष ही स्विस विशेषज्ञों के एक दल ने सौर मण्डल के बाहर पहले दो ग्रहोंग्लाइज ५८१ सीऔरडीको खोजने का दावा किया है। उनका कहना है कि यहां जीवन की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।
डॉ. डेरेक के अनुसार ऐसे ग्रह भी मौजूद हैं, जहां जीवन की संभावनाएं हैं। 76 वर्षीय डॉ. डेरेक सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरेस्टेरियल इंटेलीजेंस प्रोजेक्ट के फाउंडर भी हैं। उन्होंने इस प्रोजेक्ट की आधारशिला 1961 में रखी थी। नासा द्वारा हाल ही में एक ऐसा चित्र भी जारी किया गया है, जो काफी कुछ मानव आकृति से मिलता-जुलता है।
नासा के विशेषज्ञों का कहना है कि यह तस्वीर उन्हें मंगल ग्रह से प्राप्त हुई है। यह काफी कुछ हॉलीवुड के ख्याति प्राप्त फिल्म निर्देशक स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्मजुरासिक पार्कके डायनासोर से मिलती-जुलती है। यह चित्र नासा की मार्स एक्सप्लोरिंग स्प्रिट द्वारा लिया गया है।
जिज्ञासा के लिए आर्थिक मदद बॉयबैंडग्रुप के पूर्व पॉप स्टार रॉबी विलियम्स तो एलियंस के बारे में जानने के लिए इसकदर बेताब हैं कि उन्होंने इस शोध के लिए आर्थिक मदद भी दे दी है। अब पॉप स्टार न्यूयॉर्क के गोडार्ड इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस स्टडी सेंटर की विजिट भी करेंगे और शोध से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं पर विशेषज्ञों से चर्चा करेंगे।
रॉबी का कहना है कि वे जब रात को सोते हैं, तो उन्हें उस दुनिया और एलियंस के सपने आते हैं, जिसके कारण रात में उनकी नींद खुल जाती है। इतना सब होने और अपनी बढ़ती जिज्ञासा को शांत करने के लिए ही रॉबी ने इस महत्वपूर्ण विषय पर शोध के लिए अपनी ओर से आर्थिक मदद की है। सिर्फ रॉबी ही नहीं, उनके कई मित्र भी अब इस काम में आर्थिक मदद के लिए आगे रहे हैं।
खास क्या है अगले वर्ष तक दूसरे ग्रह पर जीवन की खोज में महत्वपूर्ण मोड़ आने की संभावना विशेषज्ञ जता रहे हैं। नासा द्वारा जल्दी ही केपलर स्पेस टेलीस्कोप नामक एक विशाल यंत्र लांच किया जा रहा है, जो इस खोज को तकनीकी रूप से मजबूत बनाने में मददगार होगा। इसके माध्यम से सूर्य के चारों ओर स्थित ग्रहों, तारों और आकाशगंगाओं उनसे संबंधित चीजों को बड़े आकार में स्केन करने में भी सहूलियत होगी।
फिल्में भी बनीं इस विषय के प्रति लोगों की उत्सुकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस पर बच्चों के लिए फिल्में, कॉमिक बुक्स वीडियो गेम्स लगातार तैयार किए जा रहे हैं। खास बात यह है कि ये लोकप्रिय भी खूब होते हैं। 1979 में रिडले स्कॉट ने एलियंस पर एक फिल्म बनाई थी और उसकी सफलता के बाद 1986 में इसका सीक्वल भी बना।
बाद में एलियंस पर कई फिल्में और भी बनती रहीं। भारत में भी निर्माता-निर्देशक राकेश रोशन द्वाराकोई मिल गयानामक फिल्म में इस विषय को मनोरंजक अंदाज में प्रस्तुत किया गया। तो आप भी तैयार हो जाइए, हो सकता है किसी रात सोते वक्त खिड़की से एलियन आपको गुड नाइट कहने जाए।