Friday, December 25, 2009

DID MEDIA AND CINEMA FALL APART IN 2009?


Cinema and media share a symbiotic relationship. Without cinema providing the news and much more, the media would have to totally scrap Page 3. There wouldn’t be a section called ‘entertainment news’ which seems to be one of the most popular segments with the readers at present. Similarly, cinema would be hard pressed for publicity without the wide reach that the media has. Both cinema and media need each other. But, 2009 had a few unsavory incidents which threatened to disrupt the harmony between the cinema and media. They could have been or should have been avoided or handled in a far more better and mature manner.

The relation between cinema and media is very delicate, much like marriage. It is built on mutual trust and understanding. Once there is a breach of trust from any one side, the relationship will never be the same again. It is like a wound that is difficult to heal or a flame whose embers never die down. From then on, even the slightest issues can take on big proportions, like a mountain being made out of a molehill. The necessity is to maintain the all important trust which nurtures the relationship.

What is it in 2009 that has threatened to disrupt the relationship between cinema and media? Two incidents in particular can be pointed out as ones that stood out like sores in an otherwise smooth year. There is an unwritten rule which governs the cinema-media symbiosis. An invisible line of control exists which defines the limits of freedom that both enjoy with each other. Anything beyond that line tends to leave a bad taste.
Tamil Cinema, Tamil Media


Media reports about cinema. Well, that is fine. But, reporting about cinema is sometimes misconstrued as reporting about film personalities, especially stars. That too is fine when a certain level of decorum is maintained in the way reports are rolled out. But, there are times when reporting about film personalities gets a bit too personal for anybody’s comfort. Gossip is what this form of reporting is called. But, things can sometimes get a bit more serious than gossip, which is perhaps too mild a term to describe things that are sometimes said. You might have guessed at least one of the two incidents which are being referred here.

The first was that of a supposed marriage that took place between a leading actress and an actor turned director. The second was even more serious which accused some of the very familiar names in the industry of being involved in certain illegal activities. The rather unsavory nature of this report prevents any further details from being discussed. But, chances are that you might have read or heard about this scandal from one source or the other.

Now there is no need to discuss the genuineness of these reports. We know for sure that both of them involved a more than acceptable use of imagination and improvisation than is permissible for a news item that could carry very serious implication, which could involve character assassination. So, it is understandable that the film fraternity was up in arms against the media in a flash. Their reaction was completely understandable, keeping in mind the seriousness of the reports.

But, it has to be said that a few reactions could have been more measured, keeping in mind the nature of the relationship between cinema and media. The thing to be noted here is that, in both the above mentioned reports, it was only one particular publication or source that was supposed to be at fault. But, media on the whole is much bigger than just a singular source. Many of the reactions that came in from the film fraternity regarding the reports that were carried were sweeping and scathing statements about the entire media. Ironically, even these reactions had to be reported only by the media, which was the antagonist of the incidents in question.

The idea is to keep the unwritten rule in mind. To remember not to cross the line so that the cinema-media relationship can remain cordial and complementary. Both need each other. Cinema cannot afford to go back to the 80s era of posters and word of mouth publicity when budgets are touching unheard figures, neither can media go back to the black and white era which contained very little entertainment news.

Tuesday, June 9, 2009

ગુજરાતના પ્રશ્નો માટે મુખ્યમંત્રીએ આજે સાંસદોની બેઠક બોલાવી


કેન્દ્ર સાથેના ગુજરાતના પડતર ૬૦ જેટલા પ્રશ્નો અંગેની માહિતીથી સાંસદોને વાકેફ કરાશે
લોકસભાની ચૂંટણી બાદ સંસદના આગામી સત્રમાં કેન્દ્ર સાથેના ગુજરાતના પ્રશ્નોને વાચા આપવાના હેતુસર મુખ્યમંત્રી નરેન્દ્ર મોદીએ બુધવારે લોકસભા અને રાજ્યસભાના તમામ સાંસદોની એક અત્યંત મહત્ત્વપૂર્ણ બેઠક બોલાવી છે.
રાજ્યના પાટનગર ગાંધીનગર ખાતે મળનારી આ બેઠકમાં રાજ્યના ૬૦ જેટલા મહત્ત્વના પ્રશ્નો અંગેની માહિતી અને જાણકારીથી તમામ સાંસદોને વાકેફ કરવામાં આવશે. આ પ્રશ્નોમાં દિલ્હી-મુંબઇ ઇન્ડસ્ટ્રીયલ કોરિડોર, બંદરોની રેલ કનેકિટવિટી, નાગરિક ઉયનનો પ્લાન સહિતના પ્રશ્નો ચર્ચાની એરણે રહેશે.
પ્રાપ્ત માહિતી અનુસાર, મુખ્યમંત્રી નરેન્દ્ર મોદીએ આવતીકાલે બોલાવેલી સાંસદોની બેઠકમાં કોંગ્રેસના ત્રણ કેન્દ્રીય મંત્રીઓ દિનશા પટેલ, ભરતસિંહ સોલંકી અને તુષાર ચૌધરીને પણ આમંત્રણ આપ્યું છે. બેઠકમાં ભાજપના રાષ્ટ્રીય મહામંત્રી અરુણ જેટલીની હાજરી મહત્ત્વની બની રહેશે.
આમ તો, દર વર્ષે ફેબ્રુઆરી માસમાં આ બેઠક બોલાવાતી હોય છે પરંતુ આ વખતે લોકસભાની ચૂંટણીઓને કારણે બેઠક વિલંબથી બોલાવાઇ છે. મુખ્યમંત્રી દ્વારા તમામ સાંસદોને ગુજરાતના પ્રશ્નોને સંસદના આગામી સત્રમાં ન્યાય મળે તે હેતુથી આ પ્રશ્નોનો અવાજ સંસદમાં ઊઠે તે હેતુથી પ્રશ્ન સંબંધી તમામ પાસાઓથી સાંસદોને વાકેફ કરી માહિતગાર કરાશે.
દિલ્હી-મુંબઇ કોરિડોર ગુજરાતના વિકાસમાં પાયારૂપ છે અને તે જ પ્રકારે બંદરોની રેલ કનેકિટવિટીથી રાજ્યના ૪૩ બંદરો અને દરિયાકિનારાનો વિકાસ આસમાનને આંબે તેવી પરિસ્થિતિનું નિર્માણ થઇ શકે તેમ હોઇ આ મુદ્દાથી પણ સાંસદોને સંપૂર્ણ જાણકારી અપાશે.
આ જ પ્રકારે નાગરિક ઉડ્ડયનનો જે પ્લાન તૈયાર છે જો કેન્દ્રની મદદથી તે અમલી બની જાય તો રાજ્યના વિકાસમાં વધુ એક મોરપીંછ ઉમેરાય તેમ છે. આમ, રાજ્યના તમામ મહત્ત્વના પ્રશ્નોની માહિતીથી સાંસદોને સજજ કરવાનું આયોજન મુખ્યમંત્રી દ્વારા હાથ ધરાયું છે.

Thursday, January 22, 2009

ऑस्कर में भी छाए रहमान


गोल्डन ग्लोब अवार्ड में झंडा बुलंद करने के बाद संगीतकार ए आर रहमान और ब्रिटिश-भारतीय फिल्म 'स्लमडाग मिलियनेयर' आस्कर फतह की ओर अग्रसर हो गए हैं। स्लमडाग.. के संगीतकार रहमान को तीन और फिल्म को कुल दस आस्कर पुरस्कारों के लिए नामांकन मिला है।
22 फरवरी को हालीवुड के कोडेक थिएटर में घोषित होने वाले आस्कर पुरस्कारों के लिए स्लमडाग मिलियनेयर को 'द क्यूरियस केस आफ बेंजामिन बटन' से कड़ी चुनौती मिलेगी। हालीवुड के मशहूर अभिनेता ब्रैड पिट की इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाली फिल्म को कुल 13 नामांकन मिले हैं। इन दोनों फिल्मों को बैटमैन सीरीज की 'द डार्क नाइट' और 'मिल्क' भी कड़ी टक्कर देंगी, जिन्हें आठ-आठ नामांकन मिले हैं।
आस्कर इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी भारतीय को तीन नामांकन मिले हैं। रहमान को फिल्म में 'जय हो' और 'ओ साया' गीतों और सर्वश्रेष्ठ संगीत के लिए नामांकन मिला। करोड़ों भारतीयों को अपनी धुनों पर नचाने वाले रहमान ने नामांकन पर खुशी जताते हुए कहा, 'कुछ अच्छा हो रहा है। मैं बेहद खुश हूं।' ब्रिटिश निर्देशक डैनी बायल की इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म, निर्देशक, पटकथा, सिनेमेटोग्राफी, साउंड मिक्सिंग, साउंड एडिटिंग और फिल्म संपादन के लिए भी नामांकन मिले हैं।
उल्लेखनीय है कि अब तक सिर्फ दो भारतीयों को ही प्रतिष्ठित आस्कर पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव मिला है। भानु अथैया को 'गांधी' फिल्म में ड्रेस डिजाइनिंग और सत्यजीत रे को फिल्मों में उनके योगदान के लिए मानद आस्कर मिला था। स्लमडाग.. मुंबई स्थित एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती 'धारावी' में रहने वाले एक 18 वर्षीय अनाथ लड़के की कहानी है। यह लड़का छोटे पर्दे के मशहूर शो 'कौन बनेगा करोड़पति' के तर्ज वाले एक टीवी गेम शो को जीतकर करोड़पति बन जाता है। फिल्म में अनिल कपूर, इरफान खान, देव पटेल और फ्रिदा पिंटो के अभिनय की पूरी दुनिया में सराहना हो रही है। चार गोल्डन ग्लोब अवार्ड जीतने वाली छोटे बजट की यह फिल्म शुरू से ही आस्कर अवार्ड की मजबूत दावेदार बताई जा रही है।
मुंबई में गुरुवार को इस फिल्म का विशेष प्रीमियर शो आयोजित किया गया। इस मौके पर निर्देशक बायल ने फिल्म के आस्कर नामांकन को इसके कलाकारों को समर्पित किया।

Tuesday, January 20, 2009

ओबामा होंगे कामयाब


अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति को लेकर पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है। लोग इसे एक नए युग की शुरुआत के रूप में देख रहे हैं। लेकिन हकीकत यह है कि अभी भी अमेरिका में ऐसे लोग हैं जो नस्लवाद को समस्या के रूप में देखते हैं।
हालांकि सुकून की बात ah हो सकती है कि हाल के वर्षो में ऐसे लोगों की संख्या तेजी से घटी है, जो नस्लवाद को एक गंभीर समस्या मानते हैं। यही नहीं, लोगों को उम्मीद है कि ओबामा के कार्यकाल के दौरान नस्ली रिश्तों में सुधार आएगा।
ओबामा के शपथ ग्रहण की पूर्व संध्या पर अमेरिका के प्रसिद्ध अखबार वाशिंगटन पोस्ट और न्यूज चैनल एबीसी द्वारा करवाए गए एक सर्वे से पता चला है कि हर चौथा अमेरिकी नस्लवाद को बड़ी समस्या मानते हैं। जबकि तेरह साल पहले करवाए गए ऐसे ही एक सर्वे में आधे से ज्यादा लोगों ने नस्लवाद को समस्या के रूप में चिह्नित किया था।
इस सर्वे के अनुसार अमेरिका की श्वेत और अश्वेत आबादी में नस्लवाद की समस्या को देखने का नजरिया भी अलग-अलग है। नस्लवाद को 22 फीसदी श्वेत समस्या मानते हैं, जबकि 44 फीसदी अश्वेत इसे गंभीर मसला मानते हैं। इसी तरह नस्लीय समानता के मामले में भी श्वेत और अश्वेतों के विचार जुदा हैं। जहां पचास फीसदी अश्वेत मानते हैं कि अफ्रीकी-अमेरिकियों ने नस्लीय समानता का लक्ष्य हासिल कर लिया है या जल्दी ही कर लेंगे, जबकि 72 फीसदी श्वेतों ने कहा कि दोनों समुदायों में कोई नस्ल के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता।
वाशिंगटन पोस्ट और एबीसी का यह सर्वे 13 से 16 जनवरी के बीच एक हजार से ज्यादा अमेरिकियों के बीच करवाया गया था। इनमें से 47 फीसदी ने माना कि अमेरिका में अश्वेत नस्लीय भेदभाव का शिकार बने हैं।
मालूम हो कि इससे पहले सीएनएन के एक सर्वे में 70 फीसदी अमेरिकियों ने माना था कि ओबामा के चुनाव के साथ ही मार्टिन लूथर किंग जूनियर के नस्लीय समानता का सपना पूरा हो गया है।
हिंदुस्तानियों की हसरत
दुनिया भर में फैले भारतीयों सहित पूरी दुनिया ओबामा से उम्मीद लगाए बैठी है। सवाल है कि आखिर लोग ओबामा से क्या चाहते हैं। यह जानने के लिए बीबीसी व‌र्ल्ड ने एक सर्वे करवाया, जिससे पता चला कि वैश्विक आर्थिक संकट को दूर करना ओबामा की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। पेश है ओबामा से भारतीयों की उम्मीदें:
-63 फीसदी भारतीय मानते हैं कि अमेरिका का शेष विश्व के साथ रिश्ता सुधरेगा
-35 फीसदी भारतीय चाहते हैं कि जलवायु परिवर्तन को सर्वोच्च प्राथमिकता दें ओबामा
-28 फीसदी भारतीय चाहते हैं कि इजरायल-फलस्तीन संकट हल करने को दी जाए वरीयता

-27 फीसदी भारतीय चाहते हैं कि इराक से वापस आ जाए अमेरिकी फौजें

-26 फीसदी चाहते हैं कि अफगानिस्तान सरकार को मिलती रहे अमेरिकी मदद

पहले क्या करें

बीबीसी के इस सर्वे में लोगों से ओबामा की सर्वोच्च प्राथमिकताएं गिनाने के लिए कहा गया। आइए, देखते हैं किस प्राथमिकता को कितने वोट मिले

1-वैश्विक आर्थिक संकट का समाधान: 72 फीसदी

2-इराक से अमेरिकी फौजों की वापसी: 50 फीसदी

3-जलवायु परिवर्तन से लड़ने की जरूरत: 46 फीसदी

4-दूसरे देशों से अमेरिकी रिश्तों में सुधार:46 फीसदी

5-इजरायल-फलस्तीन संकट का हल: 43 फीसदी

छह घंटे में सज गया व्हाइट हाउस

अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनके परिवार की पसंद के अनुसार व्हाइट हाउस को सजाने में रिकार्ड छह घंटे में पूरा किया गया। आमतौर पर इस काम में करीब छह महीने लगते हैं।

व्हाइट हाउस को रिकार्ड समय में तैयार करने में 100 कर्मचारियों की मेहनत लगी। उन लोगों ने राष्ट्रपति के आधिकारिक निवास में फर्नीचर, कपड़े, भोजन से लेकर कार्पेट तक सभी सामान को आसानी से बदल दिया।

व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से न्यूज चैनल सीएनएन ने कहा कि ओबामा परिवार की वस्तुओं को 93 कर्मचारियों ने गाड़ी से उतारा। इस रिपोर्ट के मुताबिक व्हाइट हाउस को सजाने में लगे कर्मचारियों को पहले ही स्पष्ट बता दिया गया था कि यह काम समय से पूरा कर लेना है ताकि परेड के बाद जब राष्ट्रपति ओबामा का परिवार अपने नए निवास में आए, तो उन्हें सब कुछ व्यवस्थित मिले।

गौरतलब है कि इसी महीने शिकागो से वाशिंगटन आने के बाद ओबामा परिवार अस्थायी तौर पर ब्लेयर हाउस में रह रहा था।

अमेरिका के इस प्रथम परिवार के साथ राष्ट्रपति ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा की मां मरियन राबिंसन भी होंगी। व्हाइट हाउस की दूसरी और तीसरी मंजिल पर 24 कमरे हैं। ओबामा परिवार ने इस स्थान को सुसज्जित करने के लिए एक लाख अमेरिकी डालर में कैलिफोर्निया के डेकोरेटर माइकल स्मिथ की सेवाएं ली थीं।

मालूम हो कि ओबामा परिवार का सामान व्हाइट हाउस में आने से पहले ही पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश का सामान बांधकर उनके गृह राज्य टेक्सास भेज दिया गया।

इतिहास के आइने में

भविष्य ओबामा का इंतजार कर रहा है। दुनिया को बदल कर रख देने का दावा करने वाले ओबामा की नजरें भी कल पर टिकी हुई हैं। इसमें दोराय नहीं है कि संकटों से पार पाने की रणनीति बनाने में उन्हें कहीं न कहीं अश्वेतों के लंबे संघर्ष से संबल मिलता रहेगा। इसके मद्देनजर पेश है अश्वेतों के संघर्ष की कहानी पर एक नजर

1619: अमेरिका में अफ्रीकी गुलामों का पहुंचना शुरू

1800: अमेरिका में गुलामों की संख्या 66 लाख

1861: अमेरिका में गृह युद्ध प्रारंभ

1865: गृह युद्ध खत्म, संविधान ने गुलामी प्रथा खत्म की, लेकिन नस्लभेद जारी रहा

1950-60: नस्लभेद के खिलाफ अश्वेत और प्रबुद्ध श्वेत सड़कों पर उतरे। 110 शहरों में नस्ली दंगे

1955: अश्वेत महिला रोजा पा‌र्क्स ने श्वेत के लिए बस में सीट खाली करने से इनकार किया

1963: मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने वाशिंगटन में अपना मशहूर भाषण दिया, जिसमें उन्होंने कहा था, 'आई हैव ए ड्रीम' [मेरे पास एक सपना है]

1964: सिविल राइट्स एक्ट पर हस्ताक्षर। सभी को बराबर अधिकार। श्वेत और अश्वेतों में विवाह पर रोक हटी

1968: मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्या

1989: कोलिन पावेल अमेरिकी सेना के पहले अश्वेत प्रमुख बने। बाद में उन्होंने विदेश मंत्री का भी जिम्मा संभाला

2008: बराक ओबामा राष्ट्रपति चुनाव जीतने वाले पहले अश्वेत बने