Wednesday, December 3, 2008

गोलियां खाकर भी नहीं छोड़ा आतंकी को

Dec 02, 06:34 pm
मुंबई। औरों की सुरक्षा के लिए जो बंदूक लेकर चलते हैं उनकी जान भी खतरे में पड़ती है। लेकिन कुछ उल्लेखनीय ढंग से वीरगति प्राप्त करते हैं जिन्हें उनके बलिदान के लिए बारंबार याद किया जाता है।
अभी हाल ही में पदोन्नति प्राप्त कर सहायक सब इंस्पेक्टर का दर्जा हासिल करने वाले महाराष्ट्र पुलिस के 48 वर्षीय तुकाराम आंबले मुंबई में आतंकी हमले के दौरान एक हीरो की तरह शहीद हुए हैं। मुंबई आतंकी हमले में उभरकर सामने आए कई वीरतापूर्ण कारनामों में से एक सच्ची कहानी तुकाराम की भी है।
सलाम तुकाराम को जिसकी बहादुरी के कारण मुंबई पुलिस को आतंकी हमले का एकमात्र आतंकी हाथ लग सका है। अपने वाकी टाकी पर 26 नवंबर की रात प्राप्त संदेश के मुताबिक तुकाराम आंबले क्लास्निकोव एसाल्ट राईफल लेकर अंधाधुंध फायरिंग करने वाले आतंकियों का पीछा किया था।
आतंकियों के बारे में संदेश फैल जाने के बाद डीबी नगर पुलिस स्टेशन की टीम ने चौपाठी के लालबत्ती पर नाकाबंदी की। डीबी नगर पुलिस स्टेशन के सहायक इंस्पेक्टर हेमंत भावधनकर ने बताया कि हमें अपहृत स्कोडा कार पर दो आंतकियों के आने की सूचना मिली थी। हमने सूचना पाने के तत्काल बाद ही दक्षिण मुंबई में स्थित गीरगांव चौपाठी पर नाकाबंदी की।
उन्होंने कहा कि सूचना मिलने के कुछ देर बाद ही हमने देखा कि जिस तरह के कार का ब्यौरा दिया गया था। नाकाबंदी से 50 फीट दूर पर अपनी गति को कम कर लिया है क्योंकि यह कार यू टर्न लेने की कोशिश कर रही थी। इस प्रक्रिया में वह रोड डिवाइडर से भी टकराई। इसके बाद कार हमारी ओर आने लगी और अजमल कसाब [गिरफ्तार आतंकी] कार से उतर आया और आत्मसमर्पण करने जैसी मुद्रा में दिखा क्योंकि उसे दोबारा फिर से अंधाधुंध गोलीबारी करनी थी।
अपनी जान की परवाह किए बगैर तुकाराम आंबले कसाब के सामने आ गया और उसने आतंकी के एके 47 राइफल के बैरल को दोनों हाथों से कसकर पकड़ लिया।
तुकारम आंबले की ओर अपने बंदूक की नोक किए हुए कसाब ने ट्रीगर दबा दी। इस बहादुर पुलिसकर्मी ने सारी गोलियों को अपने सीने के अंदर समाने दिया, लेकिन उसने आतंकी के बंदूक के बैरल को नहीं छोड़ा।
गोलियां खाने के बाद तुकाराम गिर पड़ा, लेकिन कसाब [आतंकी] को नहीं छोड़ा। इसके चलते कसाब की गोलियां का शिकार तुकाराम की टीम के अन्य किसी सदस्य को नहीं होना पड़ा।
इस बीच, उसकी टीम के सदस्यों को दूसरे आतंकी इस्माईल को ढेर करने का मौका मिल गया और कसाब को धर दबोचा। इस निर्भय पुलिस कर्मी की बहादुरी के चलते एकमात्र सबूत के तौर मोहम्मद अजमल कसाब इस समय आतंकवाद निरोधक टीम के कब्जे में है। और उससे जांच टीम को मुंबई आतंकी हमले के कई महत्वपूर्ण सुरागों के बारे में जानकरियां मिल रही है।
अबतक प्राप्त जानकारियों के मुताबिक यह आतंकी प्रमुख आतंकी गुट लश्कर-ए-तैयबा के लिए पिछले डेढ़ साल से काम कर रहा था।

Tuesday, November 25, 2008

सकारात्मक सोच है आशा


आशा जीवन जीने की शक्ति प्रदान करती है। मनुष्य का जीवन अनंत आशाओं से भरा होता है। सच तो यही है कि यह हमारे जीवन के लक्ष्यों का निर्धारण भी करती है। लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि आशा और कामना की एकाध कड़ी पार करते ही मनुष्य अनंत आशाओं के 'चक्रव्यूह' में फंसता चला जाता है। जीवन में अगर सकारात्मक आशा की जाए, तो सफलता मिलनी निश्चित है। लेकिन जब समुद्र की लहरों की तरह मन में आशा की अनंत लहरे उठने लगती हैं, तो उसे पूरा करना संभव नहीं हो पाता। यह भी सच है कि जब मनुष्य की आशा एक-दो बार पूरी हो जाती है, तो वह स्वभावत: अहंकारी हो जाता है। वह सब कुछ पा लेना चाहता है, जिसकी वह कल्पना करता है। दरअसल, एक आशा पूरी होती है, तो दूसरी सिर उठाकर सामने खड़ी हो जाती है। प्रत्येक मनुष्य धन कमाना चाहता है। इसके लिए वह अनेक उल्टा-पुल्टा प्रयत्न करता रहता है। जब एक बार धन की प्राप्ति हो जाती है, तो वह और धन प्राप्त करना चाहता है। मनुष्य की चाह का कोई अंत नहीं है। वास्तव में, कामना और वासना दो ऐसे मनोवेग है, जो कभी पूरी नहीं होती है। आज तक धन की कामना और वासना की पूर्ति से कभी कोई संतुष्ट नहीं हुआ है। कामना और वासना की पूर्ति में मनुष्य अपना सारा जीवन नष्ट कर देता है, फिर भी उसे परम सुख की कभी प्राप्ति नहीं होती है। सुख की खोज में भटकते-भटकते मनुष्य अंत में दुख ही प्राप्त करके घर लौटता है। अक्सर पहली सफलता मिलते ही मनुष्य अहंकारी बन जाता है और वह चाहता है कि उसे वह सब कुछ प्राप्त हो जाए, जो वह चाहता है। वह अपने अहंकार के पैरों तले सबको रौंद देना चाहता है और जब कभी उसे कोई सफलता नहीं मिलती है या उसकी कामना की पूर्ति नहीं होती है, तो वह आक्रामक या आहत हो जाता है और हीन भावना से ग्रसित हो जाता है। दरअसल, हीन भावना से ग्रसित लोग ही विध्वंसक हो जाते हैं। पशुओं में भी यह प्रवृत्तिदेखी गई है कि जब कभी उन्हे इच्छित वस्तु प्राप्त नहीं होती है, तो वे आक्रामक हो जाते हैं। आशावादी होना जीवन के लिए उपयोगी है। लेकिन नकारात्मक आशा हमारे जीवन के लिए खतरनाक बन जाती है। आज प्रत्येक परिवार में कलह दिखाई पड़ता है, क्योंकि परिवार के प्रत्येक सदस्य अपने-अपने अहंकार की पूर्ति की आशा में बैठे रहते है। यहां तक कि भयंकर गृहयुद्ध के पीछे हमारी अपूर्ण आशाएं ही वजह बनती है। यदि हम अपने जीवन को परमात्मा का आशीर्वाद मानें, तो अशांति और तनाव कभी भी फल-फुल नहीं सकता है।
हम यह मान लें कि परमात्मा जितना चाहता है, उतना ही हमें देता है। ऐसी सोच ही हमें नकारात्मक आशाओं से मुक्ति दिलाती है। हमारे महान ग्रंथों में भी कहा गया है कि यह संपूर्ण संसार परमात्मा का है। इसके लिए हम प्रतिदिन परमात्मा को धन्यवाद दें कि हे परमात्मा! तुमने मुझे इतना योग्य समझा कि इतना सब कुछ दिया। इसके बाद किसी चीज की आशा करना ही व्यर्थ है।

Monday, September 22, 2008

First Hindu school in Britain ready to begin term

London, Sep 15 (IANS) Students will shortly begin their term at Britain's first Hindu school - the Krishna Avanti Voluntary Aided Primary School in Edgeware, north London, the area with the largest concentration of Hindus in the country.
The 'bhumi puja' (ground breaking ceremony) of the school was performed this June. The school will follow the national curriculum, but offer education based on Hindu values. Concepts of inclusivity and equality of all human beings, meditation, yoga and a strict vegetarian diet will reflect some of them.
The first batch has 30 students, who are now housed in a temporary accommodation nearby, while the new school building is completed. The eventual strength will be 240.
Rasamanbla Das of the Oxford Centre of Hindu Studies, who helped with the integration of Hindu values in the school curriculum, told BBC News: 'We have tried to enhance the syllabus by looking at what Hinduism can add, such as inclusivity and the equality of all living beings. It recognises the agency of the individual. It's very much an interactive and experiential approach to education.'
However, organisations such as the Hindu Council and Accord - a secular front of multiple faiths - are sceptical about faith schools, saying there is a danger of such schools eventually focusing on a single faith, turning it into a 'religious ghetto'.
However, Bharat Pandya of the Hindu Forum of Britain said the school was the result of a demand from Hindu parents to impart faith education to their children. The school has said it will spend as much time studying other religions as its own.

Thursday, August 7, 2008

कुछ नहीं किया तो बी टेस्ट से क्या डर


चंडीगढ़. डोपिंग के आरोपों का सामना कर रही वेटलिफ्टर मोनिका देवी के मामले में कौन सच्च और कौन झूठा वाली कहानी सामने आ रही है। आमतौर पर यह कहा जाता है कि डोप टेस्ट में पकड़े जाने पर खिलाड़ी अपनी गलती नहीं मानता और वेटलिफ्टिंग के मामले में पिछले कई दाग इस बात को साबित भी करते हैं। अगर मोनिका बीजिंग में डोप टेस्ट में फेल हो जाती तो देश के ऊपर सबसे बड़ा दाग लग जाता। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि मोनिका ने एक बार भी बी सैंपल लेने की बात नहीं की।
वह कहती रही कि अगर मुझ पर लगे आरोप सही साबित होते हैं तो मुझे सरेआम गोली मार दी जाए। लेकिन अगर मोनिका सच बोल रही है तो उसने एक बार भी बी सैंपल लेने की बात क्यों नहीं की। बी सैंपल की फीस तीन हजार रुपए है और रिजल्ट भी 72 घंटे में आ जाता है। इससे मोनिका के पास अपने आप को साबित करने और बीजिंग जाने का मौका भी बना रहता।
सूत्रों के अनुसार मोनिका के चार डोप सैंपल में से उसे एक में पॉजिटव पाया गया है। कहा जा रहा है कि यह सैंपल 6 जून वाला हो सकता या फिर 28 जुलाई वाला। यह भी कहा जा रहा है कि मोनिका ने अपने आप को पाक-साफ साबित करने के लिए साई के डायरेक्टर(टीम) आर. के नायडू पर निशाना साधा है।
मोनिका का कहना है कि साई के डायरेक्टर (टीम) आर. के नायडू हमेशा से ही शैलजा को बीजिंग भेजना चाहते थे और जब शैलजा नहीं जा पाई तो उन्होंने मेरा भी पत्ता साफ कर दिया। इसका पता मुझे अप्रैल में ही चल गया था जब जापान में एशियन चैंपियनशिप के दौरान नायडू ने कहा था कि हम ओलंपिक में एक मैडल जीतना चाहते हैं और इसके लिए शैलजा बीजिंग जाएगी। मोनिका ने कहा कि अगर उस पर लगे आरोप सही साबित हो जाएं तो सरेआम उसे गोली मार दी जाए।
मैने अपना फर्ज निभाया: नायडू
मोनिका के आरोपों का जवाब देते हुए आर.के नायडू ने भास्कर से बातचीत में कहा कि अगर मोनिका ओलंपिक में पकड़ी जाती तो देश की इज्जत पर दाग लग जाता। इसलिए मैंने पहले ही मोनिका को बीजिंग जाने से रोका। जब मुझे एनडीटीएल(नेशनल डोपिंग टेस्टिंग लैब) से 5 तारीख की शाम को मैसेज आया कि मोनिका का एक सैंपल पॉजिटव है तो मैने तुरंत मोनिका को कहा कि तुम्हें 6 की शाम तक इंतजार करना होगा। मोनिका की फ्लाइट 7 अगस्त की थी। वैसे भी एनडीटीएल और एनएडीए (नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी) में डोप सैंपल लिए जाते हैं और ये दोनों साई के अंडर नहीं आतीं। जहां तक शैलजा की बात है तो यह पहले ही साफ था कि बीजिंग में मोनिका ही जाएगी।
कैसे होता है पॉजिटव सैंपल
किसी भी खिलाड़ी का डोप सैंपल तभी पॉजिटव होता है जब उसके यूरिन में नेंड्रोलोन की मात्रा 2 नैनोग्राम से ज्यादा पाई जाए। हालांकि मोनिका के केस में अभी यह पता नहीं चला है कि सैंपल में कौन सा स्टेरॉयड था। आमतौर पर वेटलिफ्टर, रेसलर, जूडोका और तैराक स्ट्रेंथ और मसल मास बढ़ाने के लिए इस स्टेरॉयड का यूज करते हैं। एनआईएस साई पटियाला के सीनियर स्पोर्ट्स साइंटिस्ट डॉ. अशोक आहुजा का मानना है कि सैंपल से छेड़छाड़ कतई संभव नहीं है क्योंकि यूरिन से लेकर उसे बोटल में जाने और सील करने का सारा काम खुद प्लेयर्स की देखरेख में होता है।

Wednesday, August 6, 2008

माधुरी ही बन सकती हैं रोजी





पिछले दिनों देव आनंद ने अपनी फिल्म ‘गाइड’ का रीमेक बनाने की घोषणा की। इसमें वहीदा रहमान द्वारा निभाए गए किरदार में वह किसे लेंगे, यह बात अब तक देव साहब भले ही साफ नहीं कर पाए हों, पर खुद वहीदा रहमान का मानना है कि अगर इस फिल्म की रिमेक बनता है तो सिर्फ माधुरी दीक्षित ही उनके किरदार के साथ न्याय कर पाएंगी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि ‘गाइड’ की रीमेक भले ही बन जाए, लेकिन उसकी तुलना मूल फिल्म से होगी।
उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता है कि मूल फिल्म से रीमेक बेहतर हो सकता है। हालांकि जब वह फिल्म आई थी उस वक्त का माहौल अलग था और आज का माहौल अलग है। हो सकता है रीमेक हिट भी हो जाए, लेकिन ‘गाइड’ ने जो मुकाम हासिल किया है वह मुकाम उसे मिलना मुश्किल है।’
रोजी का किरदार आज की कौन सी अभिनेत्री निभा सकती है? पूछने पर वहीदा ने सोच कर कहा, ‘मैं आज के नए जमाने की हरएक अभिनेत्री को तो नहीं जानती हूं, और जब जानती नहीं हूं तो उनकी अभिनय प्रतिभा का आकलन कैसे कर सकती हूं? फिर भी मुझे ऐसा लगता है कि माधुरी दीक्षित ही रोजी के किरदार को न्याय दे सकती हैं। वह न सिर्फ बहुत ही खूबसूरत हैं बल्कि डांस में भी माहिर हैं। हालांकि अब वह फिल्में नहीं कर रही हैं इसलिए वह काम करेंगी या नहीं, मैं नहीं जानती।’
‘गाइड’ की यादें ताजा करते हुए वहीदा ने बताया, ‘फिल्म पूरी होने के बाद देव आनंद मुझसे काफी जलने लगे थे क्योंकि फिल्म का ट्रायल देखकर सभी मेरी तारीफ कर रहे थे। एक दिन देव का मुझे फोन आया और उन्होंने कहा कि वह मुझसे काफी नाराज हैं। मैंने वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि फिल्म देखने के बाद सभी लोग आपकी तारीफ कर रहे हैं, मेरी कोई तारीफ नहीं कर रहा है। हालांकि वह मजाक में नाराजगी की बात कर रहे थे, लेकिन मैं थोड़ा सा डर गई थी।’


कलम पद्धति से जोड़ा अंगूठा

अहमदाबाद. एक व्यक्ति के कट कर अलग हुए अंगूठे को चिकित्सकों ने न केवल सही तरीके से जोड़ दिया बल्कि उसमें निरंतर रक्त संचार बना रहे इसके लिए भी विशेष व्यवस्था की गई। यह सफलता कलम पद्धति से ऑपरेशन के जरिये मिली है। कन्हैयालाल परमार नामक इस युवक का अंगूठा मशीन में आकर हाथ से अलग हो गया था।
यहां के सरैया प्लास्टिक सर्जरी एंड बर्न्‍स अस्पताल के प्लास्टिक और कास्मेटिक सर्जन डॉ. हेमंत सरैया ने बताया कि कटे अंगूठे की चमड़ी को निकालकर हड्डी को रॉड के सहारे हाथ में फिट किया गया। लगातार खून मिल सके, इसके लिए जांघ की चमड़ी को थोड़ा काटकर वहां अंगूठे को पट्टी बांधकर जोड़ दिया गया।
21 दिन रखा जांघ के पास : इस ऑपरेशन के बाद हाथ को जांघ के पास करीब 21 दिनों तक रखा गया। हालांकि इस पद्धति से अंगूठा तो ठीक हो गया, लेकिन उसमें कभी नाखून नहीं आ पाएगा।

Friday, August 1, 2008

चख लिया मंगल का पानी

न्यूयॉर्क. रसायन शास्त्र में छूकर, सूंघकर और चखकर रासायनिक पावडरों की प्रारंभिक पहचान की जाती है। अब नासा के वैज्ञानिकों ने मंगल पर पानी का पता लगाकर उसे छूकर चख भी लिया है।
नासा के उपग्रह फीनिक्स मार्स लैंडर में किए परीक्षणों के बाद वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने लैंडर की रोबोटिक आर्म द्वारा लाए गए मिट्टी के नमूने में पानी की पहचान की है। रोबोटिक आर्म ने बुधवार को मिट्टी के सैंपल एक ऐसे उपकरण को दिए थे जो सैंपल को गर्म कर वाष्प की पहचान करता है। इसी यंत्र से पानी की मौजदूगी साबित हुई।
पहली बार :
एरिजोना यूनिवर्सिटी में इस अभियान से जुड़े वैज्ञानिक विलियम बॉयंटन ने कहा, ‘हमें पानी मिला है। हमें इस बर्फ-जल के प्रमाण पहले भी मिले थे, लेकिन इस जल को पहली बार ‘छुआ’ और ‘चखा’ गया है।’
अभियान बढ़ाया :
नासा का यह भी कहना है कि अब तक प्राप्त सभी नतीजे उत्साहित करने वाले हैं और स्पेसक्राफ्ट को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। परिणामों से खुश नासा ने इस अभियान को 30 सितंबर तक आगे बढ़ा दिया है। वास्तविक मिशन तीन माह का ही था, जिसकी अवधि अगस्त के अंत में समाप्त हो रही है।
फिनिक्स की प्रयोगशाला :
फीनिक्स की प्रयोगशाला में आठ ओवनों (भट्टियों) में बर्फ से परिपूर्ण मिट्टी का परीक्षण दो बार विफल होने के बाद शुद्ध मिट्टी के परीक्षण का निर्णय लिया गया था। मिट्टी को जब 32 डिग्री फेरनहाइट के तापमान पर पिघलाकर देखा तभी यह पुष्टि हो सकी कि इसमें बर्फ है।

Thursday, July 31, 2008

कल क्यों? आज और अभी


टालमटोल..। इस शब्द से तो हम सभी परिचित होंगे ही। अगर इसने एक बार हमारी जिंदगी में घुसपैठ कर ली, तो समझो तभी से हम वह सब खोने लगेंगे जो अब तक हमने पाया था। इससे फिर हम कहीं भी नहीं पहुंच पाएंगे।
सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? सबसे पहले तो यह समझना महत्वपूर्ण है कि टालमटोल की प्रवृत्ति की जिंदगी में घुसपैठ होने ही नहीं दी जाए। आपने जिम के लिए पैसे तो भर दिए, लेकिन अब आप वहां जा नहीं रहे हैं। जिंदगी में आलसी होने से आसान कोई दूसरा काम नहीं है। आपके किचन का नल टपक रहा है, लेकिन आप उस पर ध्यान देने के बजाय किसी बेवकूफी भरे टीवी सीरियल में व्यस्त होंगे।
आपको जरूरत बाजार जाकर सब्जी खरीदने की है, लेकिन आप है कि डिब्बाबंद भोजन से ही काम चलाए जा रहे हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि आप जो कार्य कर रहे हैं, वह आपको एक जैसा ही लगने लगता है और उसमें बोरियत महसूस होने लगती है। लेकिन सच तो यह है कि जिंदगी में हमेशा ही आपको रस नहीं मिल सकता, कुछ पलों के लिए आपको बोरियत भी झेलनी पड़ती है। ऐसे में खुद को यही कहिए कि यह भी जिंदगी का एक भाग है, अपने लक्ष्यों को पाने के लिए यह भी एक प्रकार का निवेश है। टालमटोल की प्रवृत्ति से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि हर समय खुद को चुनौती देते रहें। इससे आप बोरियत से बचे रहेंगे और आपमें नई ऊर्जा पैदा होगी। यह समझ लें कि कोई भी अपने ‘कम्फर्ट जोन’ में अपना साम्राज्य स्थापित नहीं कर सकता। ऐसा करना हर समय बिल्कुल संभव नहीं है।
जिंदगी का फलसफा है कि जो काम आप आज कर सकते हैं, उसे कल पर नहीं टालें। जब भी आप काम को अगले दिन के लिए टाल देते हैं, वहीं से हमारी जिंदगी में टालमटोल की प्रवृत्ति घर करने लगती है। यह प्रवृत्ति कई बार विफल होने के डर से भी पैदा होती है। हम कोई चीज इसलिए टालते जाते हैं क्योंकि हमें लगता है कि यह काम नहीं कर पाएंगे। यह आपके संदेहों और आत्मविश्वास की कमी से निपटने का एक तरीका मात्र हो सकता है।
अपनी टालमटोल की प्रवृत्ति को मात देने का सबसे अच्छा उपाय है खुद को व्यवस्थित करें। पहले तो यह तय करें कि आप चाहते क्या हैं और फिर उस कार्य को करने की डेडलाइन निर्धारित करें। अपनी प्राथमिकताएं तय करें। अगर आप उन्हें एक कागज पर लिख लेते हैं तो उससे भी शायद आपको मदद मिले। अगर आप कोई काम समय पर करते हैं तो खुद को शाबासी देना भी नहीं भूलें। इससे आपके कार्य में अद्भुत सुधार होगा। आप चाहे तो अपने किसी सहयोगी या अच्छे मित्र को खुद पर निगरानी रखने को भी कह सकते हैं। रोजाना यह सुनिश्चित करें कि आज का कार्य कल के लिए नहीं छूटेगा। विजेता कभी भी आज का कार्य कल पर नहीं छोड़ते। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि आज का कार्य कल पर नहीं छोड़ने वाले ही विजयी होते हैं।

किताब में धड़कते परदे के प्राण

एक व्यक्ति, दशकों तक जिसकी छवि एक खलनायक के रूप में लोगों के जेहन में बसी रही, जिससे मिलने से लोग खौफ खाते थे, पर्दे पर जिसकी विकरालता इतनी जीवंत थी कि लोगों ने उसे ही उसकी वास्तविक छवि मान लिया था, ऐसे अभिनेता प्राण जीवन के बारे में बताती है है बन्नी रूबेन की यह किताब-‘और प्राण’।
पर्दे से परे एक और छवि, जो एक इंसान के मन, जीवन, सपनों, संघर्षो और उम्मीदों का दस्तावेज है। वह व्यक्ति, जो पर्दे पर हमेशा अपराध और षडच्यंत्रों में लिप्त नजर आता था, अपनी असल जिंदगी में कितना सरल, ईमानदार और दयालु व्यक्ति था, जिसे जानने वाला हर व्यक्ति उससे स्नेह किए बगैर नहीं रह सकता था। किताब की भूमिका में अमिताभ बगान लिखते हैं, ‘मुझे लगा कि पर्दे पर खलनायक दिखने वाला व्यक्ति इतना भला और उदार कैसे हो सकता है.. मैंने उनसे सीखा कि अपने पेशे के प्रति पूरी निष्ठा और समर्पण ही एक अभिनेता की विशिष्टता और शक्ति होती है। वे सेट पर पहुंचने में कभी देर नहीं करते।
मिजाज ठीक न हो, तब भी शूटिंग कैंसिल नहीं करते। एक बार वे सेट पर बहुत गुमसुम और खामोश थे। जब घंटों उदासी से नहीं उबरे, तब हमें पता चला कि उनके भाई की मृत्यु हो गई है।’ ऐसी कहानियां तो अब्राहम लिंकन सरीखे लोगों के बारे में सुनने को मिलती हैं कि जीवन का कोई दुख, कोई पीड़ा उन्हें कर्म और कत्र्तव्य के रास्ते से इतर नहीं कर सकती थी। प्राण ने कभी सोचा नहीं था कि एक दिन मुंबई नगरी उनकी कर्म-भूमि होगी।
12 फरवरी, 1920 को पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान इलाके में बसे एक रईस परिवार में प्राण कृष्ण सिकंद का जन्म हुआ। तमाम शहरों में विचरते हुए स्टिल फोटोग्राफर बनने की तमन्ना लाहौर ले आई। नौकरी-पैसा सब दुरुस्त था, लेकिन किस्मत में तो अभिनेता बनना लिखा था।
इस किताब में उन तमाम वर्षो की जद्दोजहद और उतार-चढ़ावों के मार्मिक किस्से हैं। लाहौर की फिल्मी दुनिया, मंटो से पहली मुलाकात, फिल्मों से पिता की नाराजी, शुक्ला से विवाह और बच्चों का जन्म। फिर विभाजन की त्रासदी है, लाहौर से मुंबई का रुख, बेरोजगारी और फाकाकशी के वे दिन, जब लोकल ट्रेन की टिकट के लिए भी गांठ में रुपए नहीं होते थे, जब पांच रु. रोज के मेहनताने पर पहला काम मिला। और फिर सफलता की बढ़ती सीढ़ियां, स्टारडम की चमक और शोहरत की बुलंदियां कि कैसे उन बुलंदियों पर बैठा कोई व्यक्ति उन बुलंदियों को ऐसे निस्पृह भाव से देखता है, मानो ये कल न भी हों तो कोई बात नहीं। पिता की यह सीख ताउम्र प्राण की आत्मा को राह दिखाती रही, ‘सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हुए हमेशा नीचे उतर रहे लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करना, क्योंकि हो सकता है कि भविष्य में तुम्हें भी नीचे की राह देखनी पड़े।’
इस किताब से गुजरना उस पूरे समय से गुजरना भी है। किस्से-कहानियां, प्रसंग और विचार तो नायकों के होते हैं। खलनायक की कैसी कहानी और कैसा विचार। लेकिन यह किताब उसी खलनायक के जीवन को एक विशाल कैनवास पर हमारे सामने प्रस्तुत करती है। और प्राण बड़े पर्दे पर चल रही एक फिल्म की तरह है, जिसका एक-एक फ्रेम कथानक के साथ गुंथा हुआ लगता है। चार दशकों तक सिने प्रेमियों के दिल पर राज करने वाले एक शख्स की लंबी यात्रा का हर मोड़, हर पड़ाव इस किताब में है। किताब पढ़कर महसूस होता है कि इसे तैयार करने में काफी अध्ययन, शोध और परिश्रम किया गया है।
घटनाएं, प्रसंग और उन्हें कहने का अंदाज बांधकर रखता है, लेकिन अनुवाद कहीं-कहीं यांत्रिक और बोझिल हो गए हैं। सिनेमा में जिनकी रुचि है, उनके लिए तो यह किताब है ही, लेकिन सिनेमा से इतर जो जीवन के बारे में, उसके रंगों और उतार-चढ़ावों के बारे में पढ़ना चाहते हैं, उनके लिए भी इस किताब से गुजरना कहीं-न-कहीं एक समृद्ध करने वाला अनुभव ही होगा।

तैयारी ‘जादू’ की!


ासा भी एलियंसऔर दूसरे ग्रहों पर जीवन से जुड़ी संभावनाओं को गंभीरता से ले रहा है। उसके हालिया शोध से लगता है कि एलियंस का अस्तित्व है और आने वाले कुछ वर्षो में इन दूसरे ग्रह के प्राणियों से संपर्क साधा जा सकेगा। साथ ही अन्य ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं के बारे में भी स्थिति काफी कुछ स्पष्ट हो जाएगी। तो तैयार रहें एलिंयस कोहैलोकहने के लिए..
लंबे अरसे से धरतीवासियों के मन में एलियंस यानी दूसरे ग्रह के प्राणियों और यूएफओ यानी अनआइडेंटीफाइड फ्लाइंग ऑब्जेक्ट्स को लेकर कई प्रकार की जिज्ञासाएं रही हैं। साथ ही दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं के बारे में भी तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।
नासा के इस विषय में किए गए कई अनुसंधान आम आदमी की जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए काफी हद तक मददगार भी साबित हुए हैं। हालिया शोध के आधार पर अंतरिक्ष विज्ञानियों को लगता है कि अगले दो दशकों में एलियंस से संपर्क साधने में मानव सफल हो जाएगा।
क्या हैं ये एलियंस वैज्ञनिकों का मत है कि पृथ्वी से दूर दूसरे ग्रहों पर भी जीवन है और वहां भी प्राणियों का निवास है। जिस तरह हम यहां जीवनयापन कर रहे हैं उसी तरह एलियंस भी जीवित हैं। बस फर्क है, तो हमारी और उनकी शारीरिक संरचना, खान-पान, रहन-सहन और यातायात के साधनों और संचार के तरीकों का। वे भी हमारी तरह घूमते-फिरते हैं और अपनी आवक-जावक के लिए यूएफओ या उड़न तश्तरियों का सहारा लेते हैं।
यही नहीं, कई लोगों ने तो इस तरह की उड़न तश्तरियों को आकाश में चमकते प्रकाश पुंज के रूप में देखने का दावा भी समय-समय पर किया है। वैज्ञानिक भी इसकी पुष्टि के प्रमाण जुटाने में लगे हुए हैं। कई तो अपनी खोज के बहुत निकट तक पहुंचने का दावा कर रहे हैं।
जानकारों के मुताबिक द्वितीय विश्वयुद्घ के समय से ही एलियंस और उड़नतश्तरियों से जुड़ी खोज का आगाज हो गया था, जब कुछ लोगों ने इस तरह के यान देखे जाने की बात की। 1947 में एक अमेरिकी निजी विमानचालक ने जब यूएफओ देखने का दावा किया, तो विशेषज्ञों की रुचि इस विषय में और ज्यादा बढ़ गई।
डेरेक की खोजकीथ अर्नाल्ड के अनुसार उन्होंने ऐसे 9 ऑब्जेक्ट्स देखे, जो 1200 मील प्रतिघंटे की रफ्तार से उड़ रहे थे। अमेरिकी विशेषज्ञ डॉ. डेरेक का कहना है कि तकनीकी रूप से गैलेक्सीज में जीवन 10 हजार से भी अधिक आयामों में मौजूद है। पिछले वर्ष ही स्विस विशेषज्ञों के एक दल ने सौर मण्डल के बाहर पहले दो ग्रहोंग्लाइज ५८१ सीऔरडीको खोजने का दावा किया है। उनका कहना है कि यहां जीवन की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।
डॉ. डेरेक के अनुसार ऐसे ग्रह भी मौजूद हैं, जहां जीवन की संभावनाएं हैं। 76 वर्षीय डॉ. डेरेक सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरेस्टेरियल इंटेलीजेंस प्रोजेक्ट के फाउंडर भी हैं। उन्होंने इस प्रोजेक्ट की आधारशिला 1961 में रखी थी। नासा द्वारा हाल ही में एक ऐसा चित्र भी जारी किया गया है, जो काफी कुछ मानव आकृति से मिलता-जुलता है।
नासा के विशेषज्ञों का कहना है कि यह तस्वीर उन्हें मंगल ग्रह से प्राप्त हुई है। यह काफी कुछ हॉलीवुड के ख्याति प्राप्त फिल्म निर्देशक स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्मजुरासिक पार्कके डायनासोर से मिलती-जुलती है। यह चित्र नासा की मार्स एक्सप्लोरिंग स्प्रिट द्वारा लिया गया है।
जिज्ञासा के लिए आर्थिक मदद बॉयबैंडग्रुप के पूर्व पॉप स्टार रॉबी विलियम्स तो एलियंस के बारे में जानने के लिए इसकदर बेताब हैं कि उन्होंने इस शोध के लिए आर्थिक मदद भी दे दी है। अब पॉप स्टार न्यूयॉर्क के गोडार्ड इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस स्टडी सेंटर की विजिट भी करेंगे और शोध से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं पर विशेषज्ञों से चर्चा करेंगे।
रॉबी का कहना है कि वे जब रात को सोते हैं, तो उन्हें उस दुनिया और एलियंस के सपने आते हैं, जिसके कारण रात में उनकी नींद खुल जाती है। इतना सब होने और अपनी बढ़ती जिज्ञासा को शांत करने के लिए ही रॉबी ने इस महत्वपूर्ण विषय पर शोध के लिए अपनी ओर से आर्थिक मदद की है। सिर्फ रॉबी ही नहीं, उनके कई मित्र भी अब इस काम में आर्थिक मदद के लिए आगे रहे हैं।
खास क्या है अगले वर्ष तक दूसरे ग्रह पर जीवन की खोज में महत्वपूर्ण मोड़ आने की संभावना विशेषज्ञ जता रहे हैं। नासा द्वारा जल्दी ही केपलर स्पेस टेलीस्कोप नामक एक विशाल यंत्र लांच किया जा रहा है, जो इस खोज को तकनीकी रूप से मजबूत बनाने में मददगार होगा। इसके माध्यम से सूर्य के चारों ओर स्थित ग्रहों, तारों और आकाशगंगाओं उनसे संबंधित चीजों को बड़े आकार में स्केन करने में भी सहूलियत होगी।
फिल्में भी बनीं इस विषय के प्रति लोगों की उत्सुकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस पर बच्चों के लिए फिल्में, कॉमिक बुक्स वीडियो गेम्स लगातार तैयार किए जा रहे हैं। खास बात यह है कि ये लोकप्रिय भी खूब होते हैं। 1979 में रिडले स्कॉट ने एलियंस पर एक फिल्म बनाई थी और उसकी सफलता के बाद 1986 में इसका सीक्वल भी बना।
बाद में एलियंस पर कई फिल्में और भी बनती रहीं। भारत में भी निर्माता-निर्देशक राकेश रोशन द्वाराकोई मिल गयानामक फिल्म में इस विषय को मनोरंजक अंदाज में प्रस्तुत किया गया। तो आप भी तैयार हो जाइए, हो सकता है किसी रात सोते वक्त खिड़की से एलियन आपको गुड नाइट कहने जाए।