Monday, July 28, 2008

हर पत्थर कुछ कहता है


चीन काल में पत्थरों की मदद से बहुत से रोगों की चिकित्सा की जाती थी। आदिकालीन सभ्यताओं में पत्थर से चिकित्सा के अनेक उदाहरण मिलते हैं। चरक संहिता में भी पत्थर को रोग निवारण का अचूक साधन बताया गया है। लेकिन आधुनिक युग में पुन: इस विज्ञान को खोज निकाला तुकसॉन नाम के एक मसाज थैरेपिस्ट ने। उन्होंने प्राचीन पत्थर चिकित्सा पद्धति पर गहन अध्ययन किया और फिर उसका आधुनिकीकरण करते हुए उसे नए समय की स्टोन थैरेपी का रूप प्रदान किया। आजकल विश्व भर के स्पा केंद्रों में स्टोन थैरेपी का प्रचलन काफी बढ़ा है। भोपाल के एक स्पा सेंटर के विशेषज्ञ सुवीर वाजपेयी कहते हैं, ‘हमारे यहां सबसे ज्यादा प्रचलित थैरेपी स्टोन थैरेपी ही है। यह न सिर्फ मांसपेशियों का दर्द दूर करती है, बल्कि कई रोगों के इलाज में भी मददगार है।’

क्या है स्टोन थैरेपी

स्टोन थैरेपी एक किस्म की थर्मोथरेपी है, जिसमें विभिन्न आकार और वजन के पत्थरों को शरीर के अलग-अलग अंगों में रखकर चिकित्सा की जाती है। इस चिकित्सा में दो प्रकार के पत्थरों का प्रयोग होता है - बसाल्ट और संगमरमर। बसाल्ट गर्म और संगमरमर ठंडा पत्थर होता है। यह थैरेपी एक प्रकार से शरीर की धमनियों और शिराओं का व्यायाम है। आधुनिक जीवन-शैली, ठंडे मौसम और किसी प्रकार की शारीरिक गतिविधि न होने के कारण प्राय: धमनियों और शिराओं की दीवारों में थोड़ी सिकुड़न आ जाती है और रक्त का प्रवाह उस सामान्य गति से नहीं हो पाता, जो एक स्वस्थ्य मनुष्य में होना चाहिए। स्टोन थैरेपी इसमें कारगर होती है। इसमें बसाल्ट पत्थरों को गर्म करके शरीर के विभिन्न हिस्सों पर रखा जाता है। पत्थर की गर्माहट से शिराएं फैलती हैं और रक्त का संचार तीव्र हो जाता है। इसके बाद उन्हीं स्थानों पर ठंडा संगमरमर रखते हैं, जिससे शिराएं पुन: पहले वाली अवस्था में लौट आती हैं। यह प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है। इससे शिराओं का व्यायाम होता है और रक्त-संचार दुरुस्त होता है।

आयुर्वेद के जाने-माने चिकित्सक आशुतोष मालवीय स्टोन थैरेपी को बहुत महत्वपूर्ण और कारगर इलाज मानते हैं। वे कहते हैं कि पहले परिवारों में सामान्य तौर पर दर्द, सूजन आदि में पत्थर को गर्म करके उसका इस्तेमाल किया जाता है। वही चीज अब ज्यादा उन्नत तरीके से रोगों का निदान कर रही है।

स्टोन थैरेपी अनेकानेक रोगों के इलाज में कारगर है। आर्थराइटिस, इंसोम्निया, मैंस्ट्रुअल डिसऑर्डर, डिप्रेशन, पीठ दर्द, मांसपेशियों का दर्द और हाई और लो ब्लड प्रेशर में स्टोन थैरेपी बहुत फायदेमंद होती है। लेकिन जरूरी नहीं है कि कोई रोग होने पर ही या दर्द निवारण के लिए ही स्टोन थैरेपी का इस्तेमाल किया जाए। यह एक ऐसी दवा है, जिसका सेवन बिना बीमारी के भी किया जा सकता है और इसके सेवन से बीमारी होने से पहले ही दूर हो जाती है। यदि सामान्य तौर पर भी नियमित रूप से स्टोन थैरेपी का पालन किया जाए, तो असंख्य रोग पास भी नहीं फटकते।आज की तेज भाग-दौड़ भरी जिंदगी में तनाव और हृदय और मांसेपशियों पर अधिकाधिक दबाव बहुत सामान्य बात है।

ऐसी स्थिति में शरीर के तंत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए हीलिंग की आवश्यकता होती है। स्टोन थैरेपी यह काम बखूबी करती है। भोपाल के स्पा ट्रीट सेंटर के विशेषज्ञ राजन बावा कहते हैं, ‘मॉर्डन दिखने वाली यह थैरेपी हमारी प्राचीन विद्या का ही नवीनीकरण है। हमारे यहां कई बीमारियों का इलाज स्टोन थैरेपी से किया जाता है और लोगों को शत-प्रतिशत फायदा भी पहुंचता है। यहां तक कि लोग दवाइयों और डॉक्टरों से ज्यादा इस थैरेपी पर भरोसा करते हैं।’

स्टोन थैरेपी की प्रक्रिया

स्टोन थैरेपी में 46 बसाल्ट और 6 संगमरमर के पत्थरों का प्रयोग होता है। बसाल्ट पत्थर को 125 से लेकर 135 डिग्री फॉरेनहाइट के तापमान पर गर्म किया जाता है। फिर उसे शरीर के 46 अलग-अलग बिंदुओं पर रखा जाता है। पत्थर रखने से पहले शरीर पर विशेष प्रकार के मेडिकेटेड तेल से स्वीडिश पद्धति से मसाज किया जाता है। यह एक खास प्रकार की मालिश होती है, जिसमें विशेष कोणों और गति से शरीर के कुछ बिंदुओं को दबाते हैं। इसके बाद पैरों की उंगलियों से शुरू करके पिंडलियां, जांघें, कमर, रीढ़, कंधा, हाथ और हाथ की उंगलियों के बीच अलग-अलग आकार के गर्म पत्थर रखे जाते हैं। अधिक संवेदनशील हिस्सों में पत्थर को गर्म तौलिए में लपेटकर रखा जाता है।

यह पत्थर शरीर के 7 चक्रों की हीलिंग करते हैं। चक्र सक्रिय होते हैं और पूरे शरीर में रक्त का संचार तीव्र हो जाता है। ये विशेष प्रकार के पत्थर लंबे समय तक गर्म रहते हैं। 60 से 75 मिनट तक इनसे शरीर की सिंकाई होती है। फिर संगमरमर के 6 पत्थरों को आइस कूल बैग में ठंडा करके रीढ़ के बीचोंबीच और कुछ विशेष बिंदुओं पर रखा जाता है। हर पत्थर किसी विशेष अंग के लिए ही होता है। यदि इनका सही प्रयोग न किया जाए तो यह नुकसान भी पहुंचा सकते हैं।

स्टोन थैरेपी एक विज्ञान के रूप में विकसित हो रही है। दुनिया भर में ऐसे कई स्कूल खुल रहे हैं, जो विशेष रूप से स्टोन थैरेपी की शिक्षा देते हैं। कैलिफोर्निया, सेंट फ्रांसिस्को और लंकाशायर में पिछले कुछ दिनों में बड़े स्टोन थैरेपी स्कूल खुले हैं। एशिया का सबसे बड़ा स्पा सेंटर हरिद्वार स्थित आनंदा देश भर में अपनी स्टोन थैरेपी के लिए जाना जाता है।

भारत में यह चिकित्सा पद्धति धीरे-धीरे प्रसिद्ध हो रही है। आधुनिक विज्ञान के बावजूद हम अपने इतिहास, अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं। यह एक अच्छा संकेत है।

बसाल्ट पत्थर

बसाल्ट प्रकृति में पाया जाने वाला विशेष प्रकार का पत्थर है, जिसका निर्माण ज्वालामुखी से होता है। बसाल्ट पत्थरों का प्रयोग इस थैरेपी में इसलिए किया जाता है, क्योंकि उनमें ऊष्मा को सोखने की क्षमता अधिक होती है और वे ज्यादा देर तक गर्म बने रहते हैं। इनमें भरपूर मात्रा में खनिज लवण पाए जाते हैं। आमतौर पर इनका रंग भूरा और काला होता है। लेकिन ज्वालामुखियों के पास हरे, नीले और लाल रंग के बसाल्ट पत्थर भी मिलते हैं। स्टोन थैरेपी में 46 प्रकार के बसाल्ट पत्थरों का इस्तेमाल होता है, जिनका आकार 1 इंच से लेकर 6 इंच तक होता है।

क्या करती है स्टोन थैरेपी

>> मांसपेशियों का दर्द दूर करती है
>> तनाव को कम करती है
>> शरीर से नुकसानदायक टॉक्सिन बाहर निकलती है
>> पीठ दर्द में लाभदायक है
>> रक्त-संचार को बढ़ाती है

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