Monday, July 28, 2008

जलती रहे यह मशाल


बीजिंग ओलिंपिक के लिए आयोजित मशाल रिले इस वर्ष चर्चा का विषय रही। शांति की प्रतीक यह मशाल रिले तिब्बतियों के विरोध के चलते दुनिया के कई हिस्सों में हिंसक होते-होते बची। चीन ने इसे माउंट एवरेस्ट पर पहुंचाने की योजना बनाई तो पर्यावरणविदों की माथों पर बल पड़ गए। ओलिंपिक के जरिए अपनी ताकत का इजहार कराने को बेताब चीन 8 मई को इसे दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर ले गया। मशाल का यह सफर ओलिंपिक की जन्मभूमि ओलिंपिया से शुरू होकर मेजबान (तत्कालीन) देश में खत्म होता है।

25 मार्च को शुरू हुआ ‘सौहार्द का सफर’:बीजिंग ओलिंपिक के आयोजकों ने मशाल रिले को ‘सौहार्द का सफर’ (जर्नी ऑफ हॉरमोनी) का नारा दिया। 5 महाद्वीपों से गुजरने वाली इस मशाल ‘लकी क्लाउड’ (ओलिंपिक कमेटी द्वारा दिया नाम) की ऊंचाई 72 सेंटीमीटर और वजन 985 ग्राम है। 25 मार्च 2008 को सफर शुरू करने वाली यह रिले 8 अगस्त को बीजिंग में थमेगी। 1 लाख 37 हजार किमी. के इस सफर में लगभग 22 हजार मशालवाहक हिस्सा लेंगे।

बीजिंग ओलिंपिक मशाल रिले की राह :

ओलिंपिया (यूनान) से सफर शुरू करने वाली बीजिंग ओलिंपिक मशाल चीन, कजाकिस्तान, तुर्की, रूस, इंग्लैंड, फ्रांस, अमेरिका, अर्ज्ेटीना, तंजानिया, ओमान, पाक, भारत, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया, उत्तर कोरिया, वियतनाम, हांगकांग होते हुए 8 अगस्त को बीजिंग पहुंचेगी।

प्राचीन ओलिंपिक में मशाल :

मशाल की शुरुआत प्राचीन ओलिंपिक में ही हो गई थी। यूनान के देवता ज्यूस के सम्मान में इसे विधिवित पूजा-पाठ के बाद 11 स्त्रियां जलाती थीं। ओलिंपिक महोत्सव के दौरान यह पूरे समय तक जलता था।

एम्सटर्डम में फिर जली मशाल : आधुनिक ओलिंपिक की शुरुआत भले ही 1896 में हो गई हो, मशाल जलाने की परंपरा 1928 में एम्सटर्डम ओलिंपिक से शुरू हुई। इसे प्रज्ज्वलित करने का श्रेय इलेक्ट्रिक युटिलिटी ऑफ एम्सटर्डम के एक कर्मचारी को मिला।

बर्लिन से शुरू हुई मशाल रिले : ओलिंपिक मशाल रिले पहली बार 1936 में बर्लिन ओलिंपिक में आयोजित की गई। इस वर्ष यह रिले 7 देशों से गुजरी।

ओलिंपिया से शुरू हुई यह रिले बुल्गारिया, यूगोस्लाविया, हंगरी, ऑस्ट्रिया चेकोस्लोवाकिया होते हुए जर्मनी पहुंची।मशहूर को मिलता है मौका: ओलिंपिक मशाल रिले में आखिरी मशालवाहक मेजबान देश का मशहूर खिलाड़ी होता है, जो स्टेडियम में मशाल प्रज्जवलित करता है।

विवाद तो यहां भी हैं :-

बीजिंग ओलिंपिक के दौरान मशाल रेस को जगह-जगह पर विरोध प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा। तिब्बत समर्थकों ने इस मौके को दोनों हाथों से भुनाया और दुनिया को यह बताया कि चीन वहां के निवासियों का उत्पीड़न कर रहा है।

बहरहाल यह पहला मौका नहीं था, जब मशाल रिले को विरोध का सामना करना पड़ा। 1956 में मेलबोर्न ओलिंपिक मशाल रेस को पहले बड़े विरोध का सामना करना पड़ा। सिडनी में 9 छात्रों ने इस रिले को बाधित किया। इनका मानना था कि इस रिले की शुरुआत नाजी नेता और मशहूर तानाशाह एडोल्फ हिटलर की देन है, जिसे जारी नहीं रखा जा सकता।

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