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पंजाब का इतिहास गवाह है कि वहां के लोगों ने अनेक प्रतिभाशाली, साहसी लोगों को कम उम्र में खोया है। पंजाब की ये रक्तरंजित जमीन बड़ी कठिनाई से इश्मित सिंह की मृत्यु को सहन कर रही है। उसके माता-पिता किस साहस से सांस ले रहे होंगे इसकी कल्पना करना मुश्किल है। यह हादसा इतना अनापेक्षित है कि असत्य सा लग रहा है और जिस ढंग से मृत्यु हुई वह भी अविश्वसनीय सा लगता है परंतु ऊपर वाले की पटकथा पर प्रश्न नहीं पूछे जा सकते। उसे क्या जल्दबाजी थी इश्मित को बुलाने की। उसके पास तो रफी साहब और मुकेश जी हैं।
विगत वर्ष ऋतु नंदा की किताब के विमोचन पर मैं ऋषि कपूर के साथ मुंबई से दिल्ली जा रहा था और एयरपोर्ट पर इश्मित सिंह ने आकर ऋषि कपूर के पैर छुए और बताया कि वह इसी फ्लाइट से दिल्ली जा रहा है। दो घंटे विलंब से जाने वाली फ्लाइट के कारण इश्मित से बात करने का अवसर मिला। उसकी विनम्रता से उसकी गहराई का अनुमान हो रहा था। उसने ऋषि कपूर को रणबीर की फिल्म ‘सावरिया’ का एक गीत वहीं सुनाया। ऋषि कपूर ने आश्चर्य से पूछा कि संगीत जारी हुए सिर्फ तीन दिन हुए हैं और इतने कम समय में इश्मित को पूरी धुन याद हो गई।
ठीक उसी समय फ्लाइट के और विलंब से जाने की घोषणा हुई। इस घोषणा से इश्मित बहुत दुखी हो गया क्योंकि उसे अपने माता-पिता से मिलने की बेकरारी थी। ऋषि कपूर ने प्रस्ताव दिया कि इंतजार का समय काटने के लिए बियर पी जाए। इश्मित ने उन्हें बताया कि वह शराबनोशी नहीं करता। उसकी सादगी, परविार के प्रति प्रेम और संगीत के प्रति संपूर्ण समर्पण देखकर बहुत आश्चर्य हुआ और खुशी भी हुई।
दरअसल इश्मित की प्रतिभा के बारे में तमाम मौजूदा संगीतकार यह मानकर चलते थे कि एक दिन वह इतिहास रचेगा। उसके परिवार को जाने कौन से अदृश्य हाथ थामे हैं जिन्हें नमन किया जाना चाहिए।
परवीन जाकिर का शेर है-
कोई सवाल जो पूछे तो क्या कहूं उससे,
बिछड़ने वाले सबब तो बता जुदाई का।
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